Fitter क्या है? ट्रेड परिचय; औजार और दुर्घटना, सुरक्षा सावधानियाँ
Fitter क्या है:
किताब की भाषा में फिटर को ऐसे परिभाषासित किया गया है :-
मशीनों, यंत्रों के पुर्जों आदि की कटिंग, फिटिंग तथा निर्माण एवं मरम्मत करने वाले मिस्त्री को फिटर कहते हैं ।
सामान्य रूप से बोला जाये तो :-
किसी मशीन व उपकरण आदि को फिट करने वाला फिटर कहलाता है यह किसी मशीन के पार्ट्स खोलने , जोड़ने व एक - दूसरे हिस्से को आपस में फिट करने का काम करते है फिटर कारीगर एक बहु उद्देश्य कारीगर माना जाता है अपने इसी काम की वजह से निचे चित्र दिया गया है इस तरह से हाथो के द्वारा जॉब बनाते है इसमें दो हिस्से बनाये गए है ये एक दूसरे में फिट हो जाते है ये ही काम फिटर में किया जाता है
फिटर ट्रेड परिचय :-
पहले पहिये से चलने वाली गाड़ी से लेके अब सब तरह में तरक्की हासिल कर ली गयी है आज के टाइम में सारा काम मशीनो से होता है अब सभी कार्य कम्पूटराइजेशन हो गया है भारत में अब धीरे-धीरे सभी मशीने कम्प्यूटर द्वारा चलाई जाने लगी है क्योकि औद्योगिक संस्थानो में अनेक प्रकार के व्यावसायिक कार्य होते है इंजीनियरिंग क्षेत्र में फिटर ट्रेड का विशेष महत्त्व है इंजीनियरिंग वर्कशॉप में विभिन्न प्रकार के मशीनी औजार बनाये जाते है इन सभी औजार व मशीन बनाने के लिए अनेको मशीनों पे कार्य कर इनको बनाया जाता है
फिटर ट्रेड में उपयोग होने वाले औजार:-
फिटर ट्रेड में औजार का बड़ा महत्त्व है बिना औजार के फिटर एकदम अधूरी है इसमें जो औजार उपयोग किये जाते है वो है फाईलिंग , ड्रिलिंग, चिपिंग,रीमिंग ,वर्नियर कैलिपर, सूक्ष्ममापी उपकरण, हस्त रेती, चैन रैंच, स्ट्रैप रैंच,फ्लैट रेती, हथौड़ा और घन (Hammer), आरी (Saw) सोल्डरिंग फोर्जिंग ,शीट मैटल कार्य मरम्मत कार्य और पाइप फिटिंग आदि !कार्यशाला में अनेक प्रकार की फिटर ट्रेड है ; जैसे - पाइप फिटर, डाई फिटर, लॉक फिटर, मशीन फिटर ओर इसमें हम आपको आगे बताएगें फिटर ट्रेड कितने प्रकार की होती है
फिटर के प्रकार :-
- मशीन फिटर (Machine Fitter)
- लोकोमोटिव फिटर (Locomotive Fitter)
- बैंच फिटर (Bench Fitter)
- खान फिटर (Mine Fitter)
- पाइप फिटर (Pipe Fitter)
- मैटिनैंस फिटर (Maintinance Fitter)
- डाई फिटर (Die Fitter)
- ऑटो फीट (Auto Fitter)
- पेट्रोल व डीजल पेट्रोल (Petrol Diesel Fitter)
- टरबाइन फिटर (Turbine Fitter)
- विद्युत फिटर (Electric Fitter
दुर्घटना-
दुर्घटना एक बिना योजना वाली , नियंत्रण न होने वाली घटना है , जिससे किसी वस्तु , पदार्थ या व्यक्ति की क्रिया या प्रतिक्रिया के कारण व्यक्तिगत चोट लगने की संभावना बनी रहती है
दुर्घटना के कारण -
असावधानी - कारखानों में होने वाली अधिकतर दुर्घटना असावधानी के कारण होती है कार्य करते समय की चिंता के साथ - साथ कारीगर को अपनी तथा दूसरो की सुरक्षा का भी पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए
अरुचि - कभी कभी कारीगर कार्य में रूचि खो बैठता है ऐसे समय में दुर्घटना होने की संभावना अधिक हो जाती है रूचि न कई करण हो सकते है; जैसे कोई परिवारिक समस्या . फैक्ट्री से पैसा न मिलना , किसी से लड़ाई होना . किसी गलती पर डॉँट पड़ना आदि
जल्दबाजी - कारखाना मालिक के दबाव के कारण या अपने अधिक लाभ के लिए कारीगर आवश्यकता से अधिक जल्दी करता है इसके कारण दुर्घटना कई संभावना बढ़ जाती है
अज्ञानता - जिस उपकरण के बारे में पूर्ण जानकारी न हो उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए
कभी कभी अपनी झूटी शान दिखने के लिए कारीगर ऐसा कार्य करने लगता है जो दुर्घटना का कारण बन जाता है
और भी बहुत से कारण है अनजाने में कई बार कारीगर काम करने का गलत तरीका अपना लेता है जैसे बिना हैंडिल कई रेती से फाइल करना , चलती मशीन में तेल देना , बिना स्टार्टर बंद किये मशीन खोलना या चलती मशीन को हाथ से रोकना आदि
अनुशासन में कमी - अनुशासन न होने के कारण कर्मचारी आपस में हँसी मजाक करने लगते है तथा इसी हँसी
मजाक में कई बार दुर्घटना हो जाती है
नशे कई आदत - बहुत से कारीगर नशे कई आदत के शिकार हो जाते है तथा कभी कभी नशे कई अवस्था में ही कारखाने में चले जाते है ऐसे में कारीगर स्वयं तो दुर्घटना के शिकार हो होते है तथा साथ ही दूसरो के लिए भी खतरा हो सकते है दुर्घटना का सही प्रकार से ज्ञान होना ही , उनसे बचने का एक उपाय है विधि से , सही स्थान पर ही सही किया जा सकता है
सुरक्षा :-
सुरक्षा का शाब्दिक अर्थ सुरक्षित रहना है|
सुरक्षा (security) हानि से बचाव करने की क्रिया और व्यवस्था को कहते हैं। यह व्यक्ति, स्थान, वस्तु, निर्माण, निवास, देश, संगठन या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के सन्दर्भ में प्रयोग हो सकती है जिसे नुकसान पहुँचाया जा सकता हो जो किसी भी इंसान या उसके आस -पास के वातावरण को प्रभावित करती है, इनसे सुरक्षित रहना ही सुरक्षा कहलाता है! इन सभी की वजह से किसी भी स्थान ओर कार्यशाला में दुर्घटना से बचने के लिए अनेको सुरक्षा संकेत बनाये गए है
सुरक्षा संकेत :-
प्रशिक्षण काल में ही कारीगर को कारखानों में सुरक्षा के लिए उठाये गए विभिन्न कदमो , नियमो तथा उपायों की जानकारी दी जाती है विभिन्न मशीनों ओर कार्यशाला आदि की दीवारों पे अनेक निर्देश , संकेत के रूप में लगाए जाते है हर तरह से अलग अलग कार्य के लिए अलग अलग ही निर्देश, संकेत बनाये गए है
सुरक्षा संकेत चार प्रकार के होते है -
1. निषेधात्मक संकेत
2. अनिवार्य संकेत
3.चेतावनी संकेत
4.सूचनात्मक संकेत
निषेधात्मक संकेत:-
इन संकेतो के द्वारा विशेष प्रकार के कार्य करने को मना (निषिध्द) किया जाता है
जैसे भागने के लिए मना करना, ध्रूमपान न करना, आग न जलाना, गंदे कपडे, फोन का इस्तमाल न करना आदि निचे चित्र दर्शाया गया है-
अनिवार्य संकेत:-
इन संकेतो के द्वारा कारीगरों को सुरक्षात्मक निर्देश दिए जाते है ओर कारीगर इन संकेतो को सहज समझ लेते है जैसे हैलमेट, चश्मा, जूते, दस्ताने, मास्क, गीले हाथ आदि निचे चित्र दर्शाया गया है-
चेतावनी संकेत:-
ये संकेत त्रिभुजाकार होते है तथा इनको पिली पृष्ठभूमि पर काला रंग की आकृति द्वारा प्रदर्शित किया जाता है |
जैसे- आग का भय, बिजली के झटके का भय ,विषैला पदार्थ, विस्फोटक पदार्थ का भय आदि निचे चित्र दर्शाया गया है-
सूचनात्मक संकेत :-
ये संकेत वर्गाकार होते है तथा इनको हरी पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग की आकृति या सफ़ेद पृष्ठभूमि पर लाल रंग की आकृति द्वारा प्रदर्शित किया जाता है
साधारण सुरक्षा नियम - जब भी हम सम्पूर्ण सुरक्षा की बात करते है , तो उसमे अपनी सुरक्षा के साथ ही मशीनों की सुरक्षा तथा कार्यखण्ड की सुरक्षा भी सन्निहित रहती है उसका कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित तीन बातो कि जानकारी रखे तथा उसके लिए प्रत्येक नियम का पालन करे -
1.स्वयं अपनी सुरक्षा ,
2.मशीनों की सुरक्षा
3.कार्यखण्ड की सुरक्षा
कृत्रिम श्वसन - इस क्रिया के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति को साँस न आने पर ,विविध कृत्रिम क्रियाओ द्वारा साँस दी जाती है कृत्रिम श्वास क्रिया की चार प्रमुख विधियाँ निम्न प्रकार है -
1.सिल्वेस्टर विधि
2. शैफर विधि
3. मुँह - से - मुँह में हवा भरना
1.सिल्वेस्टर विधि - इस विधि का प्रयोग तब किया जाता है , जब पीड़ित के सीने की ओर छाले पड़े हो
इस विधि में पीड़ित को पीठ के बल लिटाया जाता है ओर उसकी पीठ के नीचे तकिया लगा दिया जाता है , जिससे की उसका सीना कुछ ऊपर उठ जाता है और सिर कुछ नीचा हो जाता है अब निम्नलिखित दो स्थितियों द्वारा पीड़ित व्यकित के शरीर में साँस भरने का प्रयास करे -
प्रथम स्थिति - पीड़ित के सिर पास अपने घुटनो के बल बैठ जाए उसके दोनों हाथो की आधी मुट्ठी बाँधकर हाथो को सीधा फैला दे अब पीड़ित के दोनों हाथो को धीरे धीरे मोड़कर उसके सीने पर लाए
द्वितीय स्थिति - प्रथम स्थिति में अपने हाथो से पीड़ित के सीने पर कुछ दबाव डाले
दो -तीन सेकण्ड बाद दबाव हटा ले और पीड़ित के हाथो को सिर की ओर फैला दे ओर मुट्ठिया खोल दे
उपरोक्त क्रियाओ को 10-15 बार प्रति मिनट की दर से तब तक दोहराये जब तक की उसकी श्वास क्रिया सामान्य न हो जाए जब पीड़ित के सीने पर दबाव डाला जाता है , तो फेफड़ो के अंदर की वायु बाहर निकल जाती है ओर दबाव हटाने से बाहर की ताजी वायु फेफड़ो के अंदर जाती है इस प्रकार , पीड़ित को श्वास लेने में सहायता मिलती है
शैफर विधि - यह विधि तब प्रयोग की जाती है , जब पीड़ित की पीठ पर छाले पड़े हो इस विधि में पीड़ित को पेट के बल लिटाया जाता है औऱ उसके सिर को किसी एक करवट कर दिया जाता है पीड़ित के सीने के निचे पतला तकिया रख दिया जाता है
अब दो स्थितियों का प्रयोग कर पीड़ित व्यक्ति के शरीर में श्वास भरने का प्रयास करे -
प्रथम स्थिति - पीड़ित के घुटनो के पास अपने घुटनो के बल बैठ जाए अपने दोनों हाथ पीड़ित की पीठ पर इस प्रकार रखे की दोनों हाथ सीधे रहे औऱ चारो उँगुलिया आपस में मिली रहे तथा वे अँगूठे से समकोण बनाए
द्वितीय स्थिति - इस स्थिति में , आगे की औऱ झुकते हुए पीड़ित की पीठ पर भार डाले
दो -तीन सेकण्ड बाद दबाव को हटा ले ओर अपने दोनों हाथो को सीधा कर दे
जब पीड़ित की पीठ पर दबाव डाला जाता है , तो फेफड़ो के अंदर की वायु बाहर निकल जाती है और दबाव हटाने हटाने से बाहर की ताजी वायु फेफड़ो के अंदर जाती है इस प्रकार पीड़ित को श्वास लेने में सहायता मिलती है उपरोक्त क्रियाओ को १०-१२ बार प्रति मिनट की दर से तब तक दोहराए जब तक कि उसकी श्वास क्रिया सामान्य न हो जाए
मुँह - से -मुँह में हवा भरना:-
इस विधि में पीड़ित के मुँह में सीधा हवा भरकर श्वसन क्रिया पूर्ण कि जाती है निम्नलिखित दो स्थितियों का प्रयोग कर मुँह से मुँह में हवा भरने कि प्रिक्रिया पूर्ण कि जाती है -
प्रथम स्थिति - पीड़ित पीछा बल लिटा ले अब पीड़ित कि पीठ के निचे तकिया आदि लगा दे , जिससे कि उसका मुँह थोड़ा मुँह थोड़ा पीछे कि ओर लटक जाए
द्वितीय स्थिति - पीड़ित का मुँह अच्छी तरह साफ कर ले अब उसके खुले मुँह पर महीन कपड़ा रखकर और एक हाथ से उसकी नक् बंद करके अपने मुँह से उसके मुँह में बलपूर्वक झटके से हवा भरे यह ध्यान रखे कि हवा बाहर न निकलने पाए और उसके फेफड़े कुछ फुले हवा को बाहर निकलने के लिए अपना मुँह हटा ले
उपरोक्त क्रिया को 10-12 बार प्रति मिनट कि दर से तब तक दोहराते रहे जब तक कि उसकी श्वास क्रिया सामान्य न हो जाए बलपूर्वक झटके से हवा भरते समय पीड़ित के फेफड़े फूलते हैं और ताजी वायु अंदर जाती है मुँह हटा लेने पर अंदर कि वायु बाहर निकल जाती है इस प्रकार , पीड़ित को श्वास लेने में सहायता मिलती है
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